पूर्व लेख अनुसार, हमने मनुष्य का समाज में दायित्व, हर कर्तव्य का किस प्रकार विस्तार हुआ, इस विषय पर चर्चा करने की बात कही।
व्यक्तिगत रूप से जब मानव परिवार से बंधा जब वह अपने परिवारिक कर्तव्यों को निभाता रहा। तब संतति आगे बढ़ी, संस्कृति का विकास हुआ। जीवो की जातियां, सृष्टि का संवर्धन एवं संसाधनों का विकास होना भी आवश्यक था।
आधुनिक रूप से विज्ञान उन्नति की ओर अग्रसर होता गया।
कई प्रकार के उपकरण अविष्कृत हुए, जिनसे हमारा जीवन सुखद व्यतीत होने लगा।
इसी प्रकार की प्रगति के पश्चात समाज का विकास गांव, कस्बा, शहर-नगर आदि का विकास होता गया।
इन्हीं क्षेत्रों के प्रारूपों में इन क्षेत्रों की कार्य व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए एक नेतृत्व की आवश्यकता हुई।
जोकि सरपंच पंच परमेश्वर कहलाए।
हमारे सनातन धर्म के अनुसार हमारा समाज पुरुष प्रधान समाज रहा। क्षेत्रों में सरपंच मुखिया का वर्चस्व अपना ही होता था।
सभी लोग गांव के या नगर के उसकी आज्ञा का पालन करते थे।
समाज में अगर कोई बुराई, जुर्म, महामारी, हानि पहुंचाने वाली कोई भी विपदा जब सर उठाती थी, तब यह नेतृत्वकारी अधिकारी, पंच परमेश्वर अपनी भूमिका निभाते थे। समाज में समस्या चाहे घरेलू हो या क्षेत्रीय हो सब मिलजुल कर समाधान कर लेते थे। जिसमें कुछ प्रमुख लोगों का दायित्व अधिक कहलाया।
पंच परमेश्वर मुखिया का यह स्वरूप आगे चलकर बड़े पैमाने पर भी लागू हुआ।
आज हम देखते हैं इस देश को चलाने के लिए हमें एक राजा, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री, सेनानायक, गृहमंत्री आदि की आवश्यकता होती है। इससे पूर्व भी जब राजा महाराजाओं का शासन शुरू हुआ तब उनके राज में यह पदाधिकारी उपस्थित थे।
राजा एवं उनके अधिकारी प्रजा की समस्याओं को भलीभांति सुनते एवं उनकी समस्या का समाधान भी करते।
यही प्रक्रिया परिवर्तित होकर समाज में विस्तृत पंचायत प्रणाली, शासन प्रणाली, देश के राजकाज का प्रमुख ढांचा कहलाई। इसी ढांचे के अनुसार आज देश प्रगति पथ पर अग्रसर हुआ।
समाज में मनुष्य का भी यही स्वरूप है।
मानव अपने सगे संबंधियों पड़ोसियों के काम आ जाए, उनकी समस्याओं का समाधान करें, संसार में बैर वैमनस्य को अधिक बढ़ावा ना मिले, सामाजिक सौहार्द्र को बनाए रखने के लिए आपसी सद्भाव और प्रेम का होना अनिवार्य कहलाया।
मानव ने इसी प्रणाली पर चलकर, अपने परिवार एवं अपने समाज को सही दिशा दिखलाई।
आज हम निर्विवाद रूप से कह सकते हैं कि समाज के लिए मनुष्यों में आपसी सद्भाव एवं प्रेम का होना अति आवश्यक है।
समाज में मनुष्य का इस प्रकार कार्य करना ही मानवता का एकमात्र ध्येय कहलाया।
हमें समाज के दायित्व को निभाते हुए, इसी प्रकार के व्यवहार को आगे बढ़ाना चाहिए, जोकि राष्ट्र की प्रगति के लिए सहायक सिद्ध होगा।
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